हर वो समाचार को एक बेहतरीन अंदाज में पायें जो आप अक्सर चैनल और न्यूज़ पेपर में नहीं पा सकते हैं ! इस अचार युक्त समाचार पढ़ते वक़्त आपके जीभ से निकलने वाली चटकारा कि आवाज़ इतनी जोरदार होनी चाहिए कि सत्ता और व्यवस्था में बैठे लोगों के कान के पर्दें हिल जाएँ !

Wednesday, July 6, 2011

मेरी प्रेमिका, धोनी और मैं (७ जून, ७ जुलाई और ७ अगस्त) !


झारखण्ड का लाल / हम सब का चहेता / झारखंडी क्रिकेट प्रेमियों और खिलाडियों का भगवान / लड़कियों के सपनो का सह्ज़ादा / तुरुप का पत्ता / मिट्टी को छु कर सोना बना देने वाला महेंद्र सिंह धोनी "माही" कल अपनी जिंदगी का तीन दशक पूरा कर लेगा. अपने जीवन के तीस सावन बिता लेने वाले माही की नज़र जिस किसी भी चीज़ पर पड़ती गई वो उसका होता चला गया. आज से दस साल पहले शायद खुद माही को भी यह अंदाजा नहीं होगा की कभी दोस्तों से पैसे उधार ले कर मैच खेलने वाला माही एक दिन प्रदेश का सबसे अधिक टैक्स भरने वाला व्यक्ति बन जायेगा. सयोंग वश ठीम में चयन, उसके बाद पाकिस्तान और श्रीलंका के खिलाफ यादगार पारी देखते ही देखते धोनी को इतना आगे ले गई की सेलेक्टर न चाहते हुए भी उसे अपने से दूर न कर सकें. फिर क्या था माँ देवडी की कृपा से धोनी कभी पीछे मुड कर नहीं देखा, धोनी के नेतृत्व में हर वो ख़ुशी टीम इंडिया के झोली में आती चली गई जिसके लिये देश न जाने कितने सालों से ललायित था. झारखण्ड के लिये वो घड़ी सचमुच अनमोल थी जब धोनी ने विश्व कप अपने हाथों में उठाया था. झारखण्ड के साथ-साथ पूरा देश अपनी जुबान पर धोनी का नाम लाकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था.

बस यह महज एक संयोग ही है की मेरा भी जन्मदिन कल से ठीक एक महीने बाद है और मेरी प्रेमिका का कल से ठीक एक महीने पहिले था. यानि की मेरी प्रेमिका का जन्मदिन सात जून, धोनी का सात जुलाई और मेरा सात अगस्त को है. हमदोनो के बीच सिर्फ धोनी का बर्थडे ही नहीं है बल्कि खुद धोनी भी कई बार विलन बन कर आ जाता है. धोनी को दिखाकर वो बार-बार मुझे दुहाई देते रहती है की तुम क्या किये आज तक ? इससे अच्छा होता की मैं धोनी की पीछे पड़ती तो शादी के बाद कम से कम साक्षी की तरह अपने सपनो का शहर गोवा के समुद्रों में गोते तो लगा पाती, भले ही मैं समुद्र के लहरों पर न लहराती लेकिन कम से कम मीडिया के कैमरे मेरे बदन पर और मेरी तस्वीर दुनिया के सभी घरों में लाइव तो लहराती.

वैसे यह बात भी सौ फिसिदी सच है की लोग जब फेमस हो जाते हैं तो हर कोई उससे किसी न किसी रूप में खुद को जोड़ने लगता है. तभी तो मैं जब भी घर जाता हूँ तो मेरी माँ मेरे चेहरे पर प्यार से हाथ फेरते हुए यह कहना नहीं भूलती है की साइड से मेरे बच्चा एक दम धोनी जैसा ही लगता है. अब माँ को कौन समझाए की भैंस की तरह चमड़ी और बैल की तरह बुद्दी वाला उसका बेटा धोनी की तरह तो क्या उसके भाई नरेंद्र की तरह भी कभी नहीं लग सकता.

झारखण्ड के प्रतिभावान खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी के जन्मदिन पर ईडीयट न्यूज़ की ओर से आप सबों और धोनी को ढेरों बधाइयाँ और जोहार. सन्नी शारद.

रिचार्ज होती जिंदगी !

आज जिंदगी की गति इतनी तेज़ हो गई है की खाने तक को किसी को फुर्सत नहीं है. सुबह का खाना शाम को तो रात का पता नहीं. इस भागम-भाग जिंदगी में यदि जिंदगी भी मोबाइल के कूपनों से रीचार्ज होती तो सबकुछ कितना आसान हो जाता. जब जितना का जी किया रीचार्ज कर लिये. जब हर कोई रिचार्ज पर आश्रति हो जायेगा तो कैसी-कैसी परिस्थितियां होगी ? किराने की दुकान की तरह हर गली मोहल्ले में मोबाइल रिचार्ज सेण्टर की तरह आदमी रिचार्ज सेण्टर होगा. सुबह-सुबह ऑफिस जाने वाले हर -रोज़ रास्ते में दस या बीस रुपये का रिचार्ज करवाते हुए जायेंगे. कोई महीने भर का एक बार ही रिचार्ज करवा लेगा तो कोई बार-बार कस्टमर केयर (यमराज) के पास फोन करके पूछेगा की सर लाइफ टाइम वाला कोई ऑफर है क्या ? कोई भागे-भागे दुकान पर आएगा और कहेगा की भईया जल्दी से दस रुपये का टॉप अप मुझमे डाल दीजिये मेरा बीपी एकदमे लो हो रहा है. कहीं ऐसा न हो की मेरी बेट्री भी लो हो जाये और मेरी जिंदगी स्विच ऑफ हो जाये.
ऐसी स्थिति में रात को डाइनिंग टेबल पर पूरे परिवार के साथ खाना खाने का मज़ा किरकिरा हो जायेगा. वैसे भी यह फ्लैट कलचर ने हरेक आंगन में दिवार उठा कर सबको अलग कर ही दिया है. फिर भी माँ खाना खिलाकर हमेशा की तरह अपना प्यार जाताना नहीं भूलेगी. लेकिन तब डाइनिंग टेबल पर माँ के हाथों का लज़ीज़ व्यंजन तो नहीं होगा लेकिन माँ तरह-तरह के कूपन जुगाड़ करके रखेगी और रात को खाने के समय अपने प्यारे बच्चों को देते हुए कहेगी की गुप्ता जी की बीबी अमेरिका जा रही थी तो वही से यह स्पेशल "आदमी रिचार्ज कूपन" मंगवाए हैं. कुछ दिनों के बाद ये कूपन भी कई फ्लेवर में मार्केट में आ जायेगा. कोई चोकलेटी फ्लेवर लेगा तो कोई और. लेकिन कुछ खास लोग जो बेवफा बार के सौखीन होंगे उनके लिये अलग तरह का यह आदमी रिचार्ज कूपन होगा. फिर से सरकार ऐसे कूपनो पर अपना टैक्स ज्यादा लगा देगी. तब फिर इस कूपन का देसीकरण हो जायेगा और हैंगओवर कभी नहीं उतरेगा....
जब आदमी को रिचार्ज करने वाला कूपन काफी मसहुर हो जायेगा तो फिर इस पर नेताओं का भी जरुर नज़र पड़ेगी. अपनी-अपनी काबिलियत और हैसियत के अनुसार नेता जी कूपन के घोटाले करने में लग जायेंगे. अपने कार्यकर्ताओं से पार्टी की मीटिंग में कहेंगे की चुनाव आ रहा है बहुते कूपन की जरुरत पड़ेगी सब चंदे के रूप में कूपन जुगाड़ करना शुरू कर दो. फिर क्या "आदमी को रिचार्ज करने वाला कूपन" भी तरह-तरह के घोटाले में लोगों की जुबान पर छाए रहेगा. ऐसे कूपन के लिये अलग से एक एक्ट बनेगा, कमेटी बनेगी, इसके घोटाले करने वालों को भी फाँसी की सजा सुनाते हुए कसाब की तरह देश का दामाद बनाया जायेगा और कभी-कभी देखावे के लिये स्पेक्ट्रेम घोटाले की तरह इसमें भी कोई राजा और कोई रानी(कनिमोझी) पकड़ी जाएगी.
जो भी हो यह रिचार्ज कूपन आ गया तो इसका सबसे ज्यादा फायदा मैं ही उठौगा क्यूंकि दस साल से खुद खाना बना-बना कर खा-खा के तंग आ गया हूँ. कम से कम इससे मुक्ति तो मिलेगी. वैसे इस रिचार्ज कूपन से सिर्फ हॉस्टल में रहे और कुवारे नौकरी पेशा लोगों को ही फायदा नहीं होगा बल्कि शादी शुदा लोगों को भी बहुत फायदा होगा. पहली बात तो यह की बीबियाँ यह कहना भूल जाएगी की ज्यादा कहियेगा तो खाना भी नहीं बनायेंगे". और ज्यादा बोलने वाली बीबी भी कम बोलेगी क्यूंकि कहीं पति रिचार्ज करवाना छोड़ देगा तब तो उसका काम ही खत्म हो जायेगा......... इस कूपन के आने का इंतज़ार करने वाले सभी बंधुओं को सन्नी शारद का जोहार.

Tuesday, July 5, 2011

मुख्यमंत्री साहब जिन लोगों ने अपनी संताने खो दी उनको ग्रेस कौन देगा ?

पगडंडियों पर चल रही झारखण्ड में गठबंधन की सरकार की सभी पार्टियाँ जब जमशेदपुर के उपचुनाव में औंधे मुह गिरी तो तिलमिला गई. आनन फानन में कल कई फैसले लिये गए जिसमे इंटर के ख़राब परिणाम को देखते हुए अब कुल मिलाकर सोलह प्रतिशत ग्रेस देकर छात्रों को पास करने का भी फैसला लिया गया. लेकिन अब यहाँ सवाल यह उठता है की इस ख़राब रिजल्ट से जिन बच्चों ने अपना धैर्य खो कर जाने गवां दी उनके माँ - बाप को जवाब कौन देगा ? मैं मानता हूँ ये सरासर उन बच्चों की गलती है जिन्होंने ऐसा कदम उठाया. लेकिन ऐसी क्या जरुरत पड़ गई की सरकार को ग्रेस दे कर पास करने की जरुरत पड़ी? भले ही मुख्यमंत्री साहब ने यह कह दिया की कॉपी जांचने में कोई त्रुटी नहीं हुई है लेकिन क्या इस ग्रेस की खुसखबरी से शिक्षा प्रबंधन का गैर जिम्मेवाराना रवैया नहीं झलकता है ? पहले फ़ैल करो फिर पास करके अपनी वाह-वाही लूटो यह कहाँ तक सही है? आख़िरकार कॉपी जांचने में वैसे शिक्षकों को क्यूँ लगया जाता है जो छात्रों के जीवन भर की कमाई को महज़ रद्दी का कागज समझ कर उसे ठीक से पढते भी नहीं ? आखिरकर काउन्सिल वैसे कॉलेज को मान्यता क्यूँ देता है जहाँ की आधारभूत संरचना और शिक्षक न हों ? सरकार के पास बिना काम वाले मार्केटिंग बोर्ड का ऑफिस बनाने के लिये एक अरब रूपया है लेकिन जिस चीज की हमें सक्त जरुरत हैं "शिक्षा" उसके मंदिर बनाने की जब बात आती है तो गरीबी और मज़बूरी का रोना क्यूँ रोने लगती है ये सरकार ? आवाज उठाइए नहीं तो ये लोग इसी तरह प्रदेश का पैसा लुट कर वेदेशों में जमा करते रहेंगे और हमारा खून पी-पी कर खुद को बाहुबली साबित करते रहेंगे और हम सब बस एक दुसरे को जोहार करते रहेंगे...... जोहार सन्नी शारद.

Monday, July 4, 2011

चवन्नी चिंतन ...

नयी नयी मूछे आ रही थी, पैर जमीं पर नहीं होते थे , सारा फलक उम्मीदों से भरा था , उमंग कुलाचे भरता था , आकाश भी छोटा लगता था या सीधे सीधे कहू कि जवान हो रहा था तब हर लड़की के दिल में अपना अक्स देखता था .. पॉकेट में ज्यादा पैसे नहीं होते थे रूपये चार रूपये ..तभी अमिताभ की किसी फिल्म में गाना आया ' राजा दिल मांगे च...वन्नी उछाल के " .. लगा कि अपने लिए ही आनंद बक्शी साहब ने इस रचना को रचा है और लता मंगेशकर (या आशा भोंसले ) ने मेरी ही आवाज को जुबान दी है ..महज चवन्नी उछलने से लड़की का दिल जीता जा सकता है तो अपने पास तो कई चवन्नी एक साथ होते थे ..चवन्नी का भाव तब समझ में आया . ..लेकिन चवन्नी के दम पर जिस लड़की को पटाया वह समय के अनुसार " लाइफ " , फिर " वाइफ" , होम , हिटलर और अब रांग नबर के नाम से अपने मोबाईल में दर्ज है . अब तो चवन्नी उछाल कर दिल पर कब्ज़ा करने की जो सोचता है उसे हड़प्पा कालीन संस्कृति का अवशेष माना जाता है ..जाहिर है चवन्नी गयी तो चवन्नी के नाम पर प्यार प्रेम करने वाले भी एंटिक आइटम हो गए ...अठन्नी अभी भी चलन में है लेकिन क्या इसमें इतना पावर है ? अब तो बीस रूपये के भी सिक्के चलने लगे हैं ..आनंद बख्शी साहब गणित कर रहे होंगे कितने का सिक्का अब दिल की नीलामी के लिए मुफीद होंगे ..वैसे गंभीरता से कहू लोगो का दिल दहलाने के लिए तो अभी एक अन्ना ( हजारे ) ही काफी है चार अन्ना सरकार कैसे संभालती सो दोनों अन्ना से सरकार ने किनारा कर लिया ..इसलिए कोई कितना भी कहे लेकिन अन्ना की कीमत कम नहीं होगी ...बाबा की भले हो जाये ....

Saturday, July 2, 2011

ईडी, सीडी और एचआरडी !

इन दिनों ये डी समीकरण राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाये हुए है। पहले ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) बेचारे मधु भईया और उनके साथियों के पीछे पड़ा तो कल से ये सरयू राय के द्वारा सीडी लहराने के बाद ये सीडी जीवीएम (झारखण्ड विकाश मोर्चा) और अजय भईया के पीछे पड़ा हुआ है। तो तीसरा ये एचआरडी (मानव संसाधन विकाश विभाग) मंत्री जी बैधनाथ राम के गले का फंदा बने हुए है।
पहले से ही अपने वारिशों के असफल हो जाने का दर्द झेल रहे मंत्री जी की किस्मत से बदकिस्मती दूर होने का नाम ही नहीं ले रही है। मंत्री जी को बदकिस्मती का रोना रुलाने वाली में दो औरतों का नाम आ रहा है। अरे नहीं नहीं आप गलत सोच रहे हैं मंत्री जी एक ही शादी किये हैं और ये बदकिस्मती उनकी हमसफ़र नहीं है बल्कि एक तो जैक में है और दूसरी विभाग की सचिव।
इनदिनों अपने रूटीन के अनुसार झारखण्ड में भी ट्रान्सफर पोस्टिंग का खेल जोरो पर है। पिछले पांच दिनों का अख़बार पलट कर देखें तो पांच सौ से भी ज्यादा ऑफिसर इधर से उधर किये जा चुके हैं। हर ओर अफरा-तफरी का माहौल है। सभी अपनी-अपनी जान पहचान मंत्री जी से जोड़ने और अपनी इच्छा के अनुसार पोस्टिंग के लिये दिन-रात मंत्री जी को दंडवत करने में लगे हुए हैं। मंत्री जी भी मानसून के समय पर आ जाने से अभी ही अगहन माना रहे हैं। मंत्री जी ने अपनी इच्छा अनुसार और अपने चाहने वालों के अनुसार ट्रान्सफर की एक लिस्ट तैयार करके विभाग के श्री मति सचिव के पास भेझा लेकिन सचिव ने उसे लौटा दिया। गुस्से से लाल-पीले मंरती जी ने तुरंत सी एम् ओ दौड़ लगाया। मुंडा जी को आपबीती सुनाई। अब उम्मीद यही जताई जा रही है की आज अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।
पिछले कुछ दिनों में एचआरडी विभाग की जितनी खिंचा तानी हुई है आज तक झारखण्ड में और किसी भी विभाग की नहीं हुई है. पहले इंटर के रिजल्ट को लेकर बवाल फिर अभी ट्रान्सफर पोस्टिंग को लेकर. हर दिन इस विभाग में कोई न कोई नया लफड़ा हो ही जाता है. मुझे तो डर है की कहीं आने वाले दिनों में हर कोई एचआरडी विभाग लेने से माना न कर दे ! कहीं ऐसा हो गया की हर विधायक कहने लगे की मुझसे ये पढाई -लिखाई का विभाग नहीं संभलेगा. यदि पढना ही रहता तो नेता काहे बनते.... फिर शायद ऐसी स्थिति में हम सबों को यह एहसास हो की हमें अपना जन प्रतिनिधि पढ़ा-लिखा, सोचने-समझने वाला समझदार चुनना चाहिए.
फ़िलहाल चलते हैं फिर मिलते हैं जोहार.... सन्नी शारद.