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Tuesday, June 14, 2011

लोग मरते हैं तो मर जाये , अपनी लकड़ी की टाल है साहब !


मुंबई के एक पत्रकार साथी की हत्या हो गयी .जे डे नाम के इस पत्रकार ने अंडरवर्ल्ड क्राइम को नजदीक से देखा है और लिखा है . पत्रकारों में इनकी हत्या को लेकर भारी आक्रोश है . दरअसल क्रिमीनल हो या नक्सली , आम तौर पर पत्रकारों से पंगा कोई नहीं लेता है बल्कि कई बार तो उनके आपसी सम्बन्ध समझदारी भरे होते हैं.यही वजह है कि क्राइम रिपोर्टर उन अपराधियों तक पहुच रखता है जिस तक पुलिस नहीं पहुच पाती . जे डे की हत्या पर पत्रकारों ने जुलूस प्रदर्शन भी किये . मुंबई से लेकर देश के बाकी हिस्सों में भी आक्रोश व्यक्त करने के लिए अलग अलग तरीके अपनाये गए . महाराष्ट्र सरकार की ओर से एक प्रस्ताव आया कि पत्रकारों को भी सुरक्षा गार्ड उपलब्ध कराया जायेगा . अपन भी सोचा कि अब पत्रकार भी बड़े आदमी हो गए बॉडी गार्ड लेकर चलेंगे . खुद तो स्कूटर पर चलेंगे बॉडी गार्ड भी पीछे पिस्तोल ताने स्कूटर पर जमा रहेगा . क्या आलम होगा ? पत्रकार भीड़ या जुलूस कवर करने गए हो और बॉडी गार्ड रास्ता साफ़ करवाता चल रहा हो .किसी नेता मंत्री का इंटरव्यू करने गया हो और नेता के पीछे जिस तरह बॉडी गार्ड खड़े होते हैं उसी तरह अपन लोगो के पीछे भी बॉडी गार्ड रायफल ताने अटेंशन रहेगा . गरज ये कि अपन लोग कनखिया कर टोह लेते रहेंगे कि मेरा बॉडी गार्ड ज्यादा लम्बा और चुस्त है या नेता जी का . कुल मिलाकर रुतबे का जो सवाल है . रुतबा कम न हो . कभी दफ्तर में आराम की तलब हुई तो बॉडी गार्ड को अपना पेन धराकर कुर्सी पर एक दो नींदे मार ली . आखिर बॉडी गार्ड है तो उसका कुछ उपयोग तो हो ,और बॉडी गार्ड को भी लगे कि मेरा मालिक मेरी भी सुध ले रहा है डे साहब तो शहीद हो गए लेकिन हम पत्रकारों का रुतबा बढाने की व्यवस्था करके गए हैं .
कहावत है न ..." लोग मरते हैं तो मर जाये अपनी लकड़ी की टाल है साहब " बहरहाल रुतबे के बाजार में डे साहब की मौत का सिक्का बड़ा कीमती साबित हो रहा है ...
सबपर तो लिखता हूँ ,आज अपनों पर भी लिख दिया , दोस्तों माफ़ करना !!!!
जोहार
योगेश किसलय .

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