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Monday, June 13, 2011

बेटा-बेटी फ़ैल, बाप का सर ऊँचा !


संपादक जी क़ानूनी पेचड़ें में पड़ें हैं. इसलिए आज फिर से उनकी कुर्सी पर तो नहीं लेकिन बगल में टेबल लगा कर लिख रहा हूँ। अच्छा लगे तो ताली दीजियेगा लेकिन बुरा लगे तो गाली नहीं दीजियेगा

का कहें गजबे हो गया उहे हुआ जो नहीं होना चाहिए हर दिन झारखण्ड में अनिष्ट हो रहा है अभिये दू दिन पहिले इंटर का रिजल्ट आया, आधा से अधिक लैकन लोग लुढ़क गया हर ओर त्राहि-त्राहि मचा हुआ है इन्टरे ऐसा स्टेज होता है जहाँ से लैकन लोग भविष्य का निर्धारण करता है अभी भविष्य के बारे में सोच कर पहीला कदम बढैबे किया था कि धड़ाम हो गया
वैसे ख़राब रिजल्ट में भी झारखण्ड कि जनता के लिये के एगो खुशखबरी छुपल है काहे कि सभी के साथ-साथ शिक्षा मंत्री का बेटा-बेटी प्रभात और पूनम भी फ़ैल हुआ है इससे मंत्री जी कि जनता में बड़ी अच्छी छवि बनी है लोग तो अब यहाँ तक कहने लगे हैं कि चलो कम से कम शिक्षा मंत्री तो प्रदीप और सुदेश भईया जैसा तो नहीं निकले अब तो हम कह सकते हैं कि झारखण्ड अब जाग रहा है, यहाँ बैमानी नहीं हो रहा हैमंत्री संत्री का भी बेटा का फ़ैल हो जाना झारखण्ड के लिये शुभ संकेत ही तो है तो दूसरी ओर प्रभात और पूनम ने तो फ़ैल हो कर अपने बाप का सर ऊँचा कर दिया है वैसे पास और फ़ैल अलग चीज़ है मैं तो कहता हूँ खुद बाप भी परीक्षा देता तो पास नहीं हो पाता मंत्री जी भले ही एक मंत्री के रूप में सफल हुए हैं लेकिन एक बाप के रूप में बिलकुल असफल हुए हैं आप खुद ही सोच लीजिये पूरे प्रदेश को शिक्षा का पाठ पढ़ाने वाले का बेटा-बेटी ही फ़ैल हो जाएँ तो इसे क्या कहेंगे शायद इसी को कहते हैं चिराग तले अँधेरा वैसे चिराग में भी उतना दम नहीं है, उतना तेल नहीं है। अब जैसा चिराग रहेगा वैसा ही प्रकाश निकलेगा बेटा का नाम प्रभात रख देने से थोड़े न सूरज जैसा चमकेगा, आख़िरकार तो बाबूजी के रंग पर ही न जायेगा।
वैसे ख़राब रिजल्ट को मंत्री जी भले ही अपनी उपलब्धि बता रहे हों लेकिन इन सब के पीछे तो हाथ लक्ष्मी चाची का ही है जब से जैक आयी है सबको हिला कर रख दी है पहिले कर्मचारियों से जगड़ा, नया - नया नियम अब तो सबसे ज्यादा नंबर लाने वाले पांच छात्रों का कॉपी भी स्कैन करके वेबसाईट परडलवाती है इतनी पर्दार्सिता कि खुद मंत्री जी का घर भी इससे नहीं बच पाया
इस ख़राब रिजल्ट से वैसे छात्र बड़े अख्रोसित हैं जिन्होंने कभी सरस्वती के सामने हाथ नहीं जोड़ा एक घंटे से अधिक किताबों पर नज़रें नहीं टिकाई इनका समय तो बस दिन भर बाइक से सरपट दौड़ लगाने और रात भर संचार क्रांति का दुरूपयोग करते हुए लड़कियों से बातें करने में ही गुज़र गया कब दो साल बीत गया इन्हें पता ही नहीं चल पाया अभी तक तो ठीक से मेट्रिक में आये अच्छे परिणामों का मज़ा भी नहीं ले पाए थे कि एक विपदा सामने गई अब करते भी क्या बाप के पैसों का हिसाब और समाज के लोगों को जवाब जो देना था सो लगे फाँसी पर झूलने, जहर खाने और जैक परिसर में हो हल्ला करने ताकि किसी तरह तो इज्ज़त बच जाये काश सब पहिले सोच लेता तो आज ऐसन नौबत नहीं आता
फ़िलहाल तो चलते हैं फिर मिलते हैं नयी बातें के साथ..... जोहार !!
सन्नी शारद !

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