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Tuesday, June 7, 2011

संपादक जी बिना बताये छुट्टी पर हैं।


आज इडीयट न्यूज़ के संपादक जी बिना बताये छुट्टी पर हैं। बहुत फ़ोन घुमाया, एसएम्एस किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। मुझे लग रहा है एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी मेहनताना कि बात नहीं हो पाई शायद इसलिए नाराज़ हो कर दूर चले गए हैं। लेकिन आशंका यह भी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी चौक - चौराहे पर अनशन या धरने पर बैठे होंगे। इसलिए जवाब नहीं दे पा रहे होंगे। क्यूंकि पिछले दो चार दिनों से यह एक नया ट्रेंड बन गया है। पिछले तीन दिनों से जो कोई भी फ़ोन कर रहा है बस एक ही बात पूछ रहा है "और बाबा के बारे में क्या ख्याल है?" "तुम उनके समर्थन में हो कि नहीं?" "सरकर को ऐसा नहीं करना चाहिए था " ये वो नौ सत्रह फलाना ढीकाना ।

भईया मेरा तो बाबा के बारे में हमेशा नेक ख्याल ही रहता है। ऐसी बात थोड़े ही है कि बाबा सलवार कमीज पहन लिये तो मेरा ख्याल बदल जायेगा। और ऐसी भी बात नहीं है कि सरकार बाबा के पंडाल में आंशु गैस छोड़े तभी ही आंशु आये, भईया मुझे तो आंशु तभी से आ रहें हैं जब से ये महंगाई मुह बाये खड़ी है।
अपन इ बात समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार महंगाई बड़ा कर जब आम लोगों को भूखा मारने का पूरा बदोबस्त करिए लिया है तो हम भूख हड़ताल पर बैठने के लिये इतना जोर क्यूँ दे रहे हैं। शायद हम सब इ बात भूल जाते हैं कि इस देश में भूखे मरने कि पूरी छुट है लेकिन भूख हड़ताल पर बैठने कि नहीं।
लेकिन दूसरी ओर यह भी बात है कि आज ऐसे-ऐसे लोग बाबा का साथ देने कि बात कर रहे हैं जो अगर न होते तो शायद उन्हें अनशन पर बैठना ही न पड़ता। वैसे कुल मिलकर कहा जाये तो बात अब काले धन और भ्रष्टाचार कि नहीं रह गयी है बल्कि इस मुद्दे का फिर से पूरी तरह राजनीतिकरण कर दिया गया है। बापू ने अपने जीवन काल में वैसी नृत्य नहीं देख पाए होंगे जो उन्होंने अपनी समाधी स्थल पर देखी। लेकिन अपुन इडीयट परिवार तो बापू का बहुत बड़ा फैन है। न बुरा देखना, न बुरा सुनना, न बुरा बोलना । इसलिए इन समझदारों से थोड़ी दुरी बना कर ही रहता हूँ। वैसे सम्पादकीय लिखते-लिखते यह खबर आ गयी है कि बाबा ने अपने समर्थकों को अनशन तोड़ देने का आदेश दे दिया है। और सरकार से बातचीत को भी तैयार हो गए हैं। लगता है अब संपादक जी आ सकते हैं। चलिए इंतज़ार करते हैं। वैसे जब इधर उधर से चुरा कर लिखिए दिए हैं तो पोस्ट करिए देते हैं। और हाँ जाते-जाते एगो बात बता देते हैं अब देखिएगा फ़ोन पर और फेसबुक पर सब इहे सवाल पूछेगा कि बाबा अनशन तोड़ने क लिये कह दिए और साकार से बात को भी तैयार हो गए हैं तो क्या समझा जाये बाबा झुक गए और लोगों कि बीच उनकी साख कम हो जाएगी। और केंद्र सरकार अपने मकशाद में कामयाब हो गयी ?
जोहार
सन्नी शारद !

1 comment:

  1. संपादक जी को कहीं भास्कर वाले तो घिसीया के न गए...

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