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Monday, June 6, 2011

मुंडे मुंडे करप्शन भिन्नः


बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार और काला धन के खिलाफ अनशन क्या किया, धर्म निरपेक्ष दलों और स्वघोषित महानुभावो ने धनुष तान दिए। काग्रेस कहने लगी बाबा के पीछे संघ का हाथ लालू कहने लगे सांप्रदायिक शक्तिया भ्रष्टाचार कैसे मिटा सकती हैं, यहाँ तक कि कई सामाजिक संगठन भी बाबा के कपड़ो में गेरुआ रंग देखकर भड़क गए। लगता है इस देश में भ्रष्टाचार के भी अलग अलग रंग हैं। अलग-अलग धर्म है, अलग-अलग जाति है । तेलगी भ्रष्टाचार करे तो अल्पसंख्यक भ्रष्टाचार, तोगड़िया करे तो भगवा भ्रष्टाचार, राजा करे तो दलित भ्रष्टाचार, तिवारी करे तो सवर्ण भ्रष्टाचार , लालू करे तो पिछड़ा भ्रष्टाचार, कोड़ा करे तो आदिवासी भ्रष्टाचार। जिस तरह से लोग भ्रष्टाचार को परिभाषित कर रहे हैं हमें लगता है देश की करेंसी को उसी तरह बताना होगा। भ्रष्टाचार में हजार के नोट इस्तेमाल किये गए तो बुर्जुआ भ्रष्टाचार और दस बीस के नोट इस्तेमाल किये गए तो सर्वहारा भ्रष्टाचार. इन भ्रष्टाचारियो पर हर कोई उंगली उठा सकता है क्योंकि बाकी लोग धर्मनिरपेक्ष भ्रष्टाचारी है। धर्म निरपेक्षता के नाम पर सातों खून माफ़ हैं अब तो लगता है कि देश का कतरा कतरा जाति, धर्म, वर्ग, क्षेत्र के आधार पर घोषित किया जाने लगेगा। मसलन ---आम का पेड़ , यह तो धर्मनिरपेक्ष पेड़ हैं , और आवला का पेड़ यह तो संप्रदायीक है, आलू की सब्जी धर्मनिरपेक्ष तो प्याज सांप्रदायिक , दिल्ली अहमदाबाद रोड सम्प्रदियिक है तो दिल्ली लखनऊ रोड धर्मनिरपेक्ष। बनारस का आसमान सांप्रदायिक है तो अजमेर का आसमान धर्मनिरपेक्ष , गाय सांप्रदायिक है तो भैंस धर्मनिरपेक्ष . केसरिया रंग सांप्रदायिक है तो हरा धर्मनिरपेक्ष . परेशानी यह है राजनीति करने वाले तो ऐसा कर ही रहे हैं सामाजिक संगठन भी इसी तरह बंटते जा रहे हैं . अन्ना हजारे के सिपाहसालार इसलिए बाबा के अनशन में जाने से कतराते रहे क्योंकि भ्रष्टाचार की लड़ाई में बीजेपी या संघ के कुछ लोग भी झंडा उठाये नजर आ गए . क्या इस देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए रंग , धर्म या जाति जैसी योग्यता रखना अनिवार्य है .बाबा अगर आप भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में ईमानदार हैं तो हम इडियट परिवार उनकी ओर से माफ़ी मांगते हैं जिन्होंने लड़ाई को कुंद करने के लिए जाति धर्म रंग और क्षेत्र से जोड़कर सवाल खड़े किये हैं ॥
आज जरा ज्यादा सीरियस हो गया न ...चलिए कल से पहले जैसा ही.......
जोहार
स्थानीय संपादक (योगेश किसलय)

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